Dohe : Kabir ke Dohe, Kabir Dohe, Kabir Das ke Dohe in Hindi, कबीर के दोहे, कबीर दास के दोहे, संत कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे, 30 प्रसिद्ध कबीर दास के दोहे

Kabir Das ke Dohe संत कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे: Dohe, Kabir ke Dohe, Kabir Dohe, Kabir Das ke Dohe in Hindi, कबीर के दोहे, कबीर दास के दोहे, संत कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे, 30 प्रसिद्ध कबीर दास के दोहे

कबीर दास के दोहे समाज को एक नई दिशा दिखाने का कार्य करते हैं। कबीर ने अपने दोहों के माध्यम से सामाजिक बुराई पर प्रहार किया और उससे समाज को मार्गदर्शन भी किया है।

Dohe : Kabir ke Dohe, Kabir Dohe, Kabir Das ke Dohe in Hindi, कबीर के दोहे, कबीर दास के दोहे, संत कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे, 30 प्रसिद्ध कबीर दास के दोहे

कबीर दास के सभी दोहे में समाज के लिये अच्छे - अच्छे सन्देश देते हैं जिनके अर्थ में समाज के लिये सन्देश समाया हुआ है। इनके दोहे के एक-एक शब्द का वास्तविक, आध्यात्मिक एवं भावनात्मक अर्थ में अच्छे - अच्छे सन्देश होते हैं। जो आपके जीवन को नया रास्ता दिखाते हैं।

हमारी इस पोस्ट में आपको कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे पढ़ने को मिलेंगे (Kabir Das Ke Dohe, Sant Kabir ke Dohe, Kabir Dohe in Hindi, Dohe, Kabir ke Dohe, Kabir Dohe, Kabir Das ke Dohe in Hindi, कबीर के दोहे, कबीर दास के दोहे, संत कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे, 30 प्रसिद्ध कबीर दास के दोहे)

संत कबीर दास के दोहे

1बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय । जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय ।।
इस दोहे का अर्थ देखें

अर्थ: इस दोहे में कबीर दास जी कहते हैं कि जब मैं इस संसार में बुराई ढूंढने निकला तो मुझे कोई बुरा नहीं मिला। जब मैंने अपने अंदर देखा तो पाया की मुझसे बुरा कोई नहीं।

2 कल करे सो आज कर, आज करे सो अब । पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ।।
इस दोहे का अर्थ देखें

अर्थ: इस दोहे में कबीर दास जी कहते हैं कि जो काम कल करना चाहते हो वह आज ही पूरा करो और जो आज करना चाहते हो उसे अभी पूरा करो। पल भर में जीवन समाप्त हो जायेगा फिर तुम अपने उस कार्य को कब करोगे।

3माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय। एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय॥
इस दोहे का अर्थ देखें

अर्थ: इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि मिट्टी कुम्हार से कहती है कि तुम मुझे क्या रौंदते हो, एक दिन ऐसा आएगा जब तुम भी इसी मिटटी में मिल जाओगे, तब मैं तुम्हे रौंदूंगी।

4माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर । कर का मन का डा‍रि दे, मन का मनका फेर॥
इस दोहे का अर्थ देखें

अर्थ: इस दोहे में कबीर दास जी कहते हैं कि माला फेरते हुए कई युग बिता दिए लेकिन मन की अशांति नहीं मिट पायी। हाथों से माला को जपना छोड़कर मन से माला को जपो अर्थात मन से परमात्मा का स्मरण करो तभी मन की अशांति मिट सकती है।

5तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई। सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ।।
6दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय।।
7जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही । सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही ।।
8पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय । ढाई आखर प्रेम का जो पढ़े सो पंडित होय ।।
9जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होए । यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोए ।।
10तन को जोगी सब करे, मन को विरला कोय । सहजे सब विधि पाइए, जो मन जोगी होए ।।
11नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए । मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए ।।
12कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर । जो पर पीर न जानही, सो का पीर में पीर ।।
13नहीं शीतल है चंद्रमा, हिम नहीं शीतल होय । कबीर शीतल संत जन, नाम सनेही होय ।।
14माखी गुड में गडी रहे, पंख रहे लिपटाए । हाथ मेल और सर धुनें, लालच बुरी बलाय ।।
15आये है तो जायेंगे, राजा रंक फ़कीर । इक सिंहासन चढी चले, इक बंधे जंजीर ।।
16लुट सके तो लुट ले, हरी नाम की लुट । अंत समय पछतायेगा, जब प्राण जायेगे छुट ।।
17ज्ञान रतन का जतन कर, माटी का संसार । हाय कबीरा फिर गया, फीका है संसार ।।
18धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय । माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ।।
19तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय । कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ।।
20बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि, हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।।
21जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ, मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।
22ऐसा कोई ना मिले, हमको दे उपदेस। भौ सागर में डूबता, कर गहि काढै केस।।
23माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर । आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ।।
24माया मुई न मन मुआ, मरी मरी गया सरीर। आसा त्रिसना न मुई, यों कही गए कबीर ।।
25पढ़ी पढ़ी के पत्थर भया लिख लिख भया जू ईंट । कहें कबीरा प्रेम की लगी न एको छींट।।
26बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।
27चलती चक्की देख के दिया कबीरा रोय। दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय।।
28पाहन पूजें हरि मिलें, तो मैं पूजूँ पहार। याते यह चाकी भली, पीस खाये संसार।।
29प्रेम प्याला जो पिए, शीश दक्षिणा दे। लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का ले।
30निंदक नियरे रखिये, आंगन कुटि छबाय। बिन पानी बिन साबुन, निर्मल करे सुभाय।।
31ज्यों तिल माहि तेल है, ज्यों चकमक में आग। तेरा साईं तुझ ही मे है, जाग सके तो जाग।।
32कागा काको धन हरे, कोयल काको देय। मीठे शब्द सुनाय के, जग अपनों कर लेय।।
33यह तन काचा कुम्भ है, लिया फिरै था साथ। ढबका लगा फुटि गया, कछु न आया हाथ।।

हमारी पोस्ट को पढ़ने के लिए धन्यवाद !.....


पोस्ट से सम्बंधित

हम आशा करते हैं आपको हमारी पोस्ट अच्छी लगी होगी। अगर आप हमारे साथ कुछ शेयर करना चाहते हैं या इस पोस्ट के सम्बन्ध में हमें बताना चाहते है तो कमेंट (Comment) करें या मेल (knowladgekidunia@gmail.com) करें और कांटेक्ट फॉर्म (Contact Form) के जरिये भी बता सकते हैं।

इस पोस्ट से सम्बंधित अपना फीडबैक जरूर दें !!...

हमारे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करें

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें


होम / Home हमारे बारे में / About संपर्क करें / Contact Us हमारे लिए लेख लिखें / Write for Us

लेखक के बारे में /About Author

KnowladgeKiDunia - ज्ञान का भंडार, ज्ञान से बढ़कर कुछ नहीं: GK Questions, Current Affairs, bharat me sabse bada chota

KnowladgeKiDunia - ज्ञान का भंडार, ज्ञान से बढ़कर कुछ नहीं

KnowladgeKiDunia वेबसाइट में आपका स्वागत है। आप हमारी वेबसाइट के जरिये जानकारियां ले सकते हैं और भी बहुत कुछ पढ़ सकते हैं।

हमारे बारे में और पढ़े .....

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ