जीवनशैली, जीवन में बदलाव | Lifestyle
एक बेटे ने पिता से पूछा-
पापा.. ये *'सफल जीवन'* क्या होता है ??
पिता, बेटे को पतंग उड़ाने ले गए।
बेटा पिता को ध्यान से पतंग उड़ाते देख रहा था...
थोड़ी देर बाद बेटा बोला-
पापा.. ये धागे की वजह से पतंग अपनी आजादी से और ऊपर की और नहीं जा पा रही है, क्या हम इसे तोड़ दें !! ये और ऊपर चली जाएगी....
पिता ने धागा तोड़ दिया ..
पतंग थोड़ा सा और ऊपर गई और उसके बाद लहरा कर नीचे आयी और दूर अनजान जगह पर जा कर गिर गई...
तब पिता ने बेटे को जीवन का दर्शन समझाया...
बेटा..
'जिंदगी में हम जिस ऊंचाई पर हैं..
हमें अक्सर लगता की कुछ चीजें, जिनसे हम बंधे हैं वे हमें और ऊपर जाने से रोक रही हैं
जैसे:-
-घर-
-परिवार-
-अनुशासन-
-माता-पिता-
-गुरू-और-
-समाज-
और हम उनसे आजाद होना चाहते हैं...
वास्तव में यही वो धागे होते हैं जो हमें उस ऊंचाई पर बना के रखते हैं..
'इन धागों के बिना हम एक बार तो ऊपर जायेंगे परन्तु बाद में हमारा वो ही हश्र होगा जो बिन धागे की पतंग का हुआ...'
"अतः जीवन में यदि तुम ऊंचाइयों पर बने रहना चाहते हो तो, कभी भी इन धागों से रिश्ता मत तोड़ना.."
*"धागे और पतंग जैसे जुड़ाव के सफल संतुलन से मिली हुई ऊंचाई को ही 'सफल जीवन' कहते हैं.."*
2)
वो दिन कितने अच्छे थे,
जब दिल हमारे सच्चे थे।
वो बचपन कितना सुहाना था,
जब हम छोटे बच्चे थे।
जब मिट्टी के घर बनाते थे,
हम दिनभर पतंग उड़ाते थे।
जब मम्मी से आंख बचाकर,
हम बाहर खेलने जाते थे।
जब हम ही चोर हम सिपाही,
हम ही राजा बनते थे।
जब गिल्ली डण्डा खेलने,
हम दो टीमों में बंटते थे।
जब लाल पीले हरे पंख,
हम कापी में दबाकर रखते थे।
जब सांप सीढी और चिड़िया उड़,
हम खेलते नहीं थकते थे।
जब अण्टी के घर की घण्टी,
हम बजा कर भाग जाते थे।
जब 26 जनवरी के लड्डू,
हम बड़े चाव से खाते थे।
जब पेड़ पर चढ कर के,
हम उतरने को चिल्लाते थे।
जब घरवालों से छुपकर,
हम गुलेल खूब चलाते थे।
जब कागज की नाव बनाकर,
हम पानी में तैराते थे।
जब बारिशों में अक्सर,
हम झूम झूम नहाते थे।
जब सुबह सुबह प्रार्थना को,
हम लाईन में लग जाते थे।
जब मैम के क्लास में आते ही,
हम गुड मार्निंग गाते थे।
जब होमवर्क अधूरा होता था,
हम झूठे बहाने बनाते थे।
जब मैडम छुट्टी रखती थी,
हम सब खुशी मनाते थे।
जब दोस्तों के संग मिल,
हम अमचूर इमली खाते थे।
जब एक रूपए की चार टाफी,
हम दूधमलाई वाली लाते थे।
जब नेशनल चिल्ड्रंस बैंक के,
हम नकली नोट गिनते थे।
जब दोस्तों के हाथ से,
हम कंचे, चुम्बक छीनते थे।
जब नई कापी लाते ही,
हम सुगंध उसकी लेते थे।
जब दोस्तों को बर्थ डे पर,
हम शायरी लिख कर देते थे।
जब दादी नानी से जिद कर,
हम कहानियां सुनते थे।
जब परियों, राजकुमारों के,
हम सपने अक्सर बुनते थे।
जब मेहमानों के आने पर,
हम कमरे में छुप जाते थे।
जब वापिस उनके जाते ही,
हम बची हुई मिठाई खाते थे।
बस वही तो दिन थे,
जब हम दिल की सुनते थे।
बस वही तो दिन थे,
जब हम सच्चाई को चुनते थे।
लेकिन ये जो समय है,
ये तो चलता जाएगा।
बचपन जवानी बुढापे में,
जीवन को बदलता जाएगा।
पापा.. ये *'सफल जीवन'* क्या होता है ??
पिता, बेटे को पतंग उड़ाने ले गए।
बेटा पिता को ध्यान से पतंग उड़ाते देख रहा था...
थोड़ी देर बाद बेटा बोला-
पापा.. ये धागे की वजह से पतंग अपनी आजादी से और ऊपर की और नहीं जा पा रही है, क्या हम इसे तोड़ दें !! ये और ऊपर चली जाएगी....
पिता ने धागा तोड़ दिया ..
पतंग थोड़ा सा और ऊपर गई और उसके बाद लहरा कर नीचे आयी और दूर अनजान जगह पर जा कर गिर गई...
तब पिता ने बेटे को जीवन का दर्शन समझाया...
बेटा..
'जिंदगी में हम जिस ऊंचाई पर हैं..
हमें अक्सर लगता की कुछ चीजें, जिनसे हम बंधे हैं वे हमें और ऊपर जाने से रोक रही हैं
जैसे:-
-घर-
-परिवार-
-अनुशासन-
-माता-पिता-
-गुरू-और-
-समाज-
और हम उनसे आजाद होना चाहते हैं...
वास्तव में यही वो धागे होते हैं जो हमें उस ऊंचाई पर बना के रखते हैं..
'इन धागों के बिना हम एक बार तो ऊपर जायेंगे परन्तु बाद में हमारा वो ही हश्र होगा जो बिन धागे की पतंग का हुआ...'
"अतः जीवन में यदि तुम ऊंचाइयों पर बने रहना चाहते हो तो, कभी भी इन धागों से रिश्ता मत तोड़ना.."
*"धागे और पतंग जैसे जुड़ाव के सफल संतुलन से मिली हुई ऊंचाई को ही 'सफल जीवन' कहते हैं.."*
2)
वो दिन कितने अच्छे थे,
जब दिल हमारे सच्चे थे।
वो बचपन कितना सुहाना था,
जब हम छोटे बच्चे थे।
जब मिट्टी के घर बनाते थे,
हम दिनभर पतंग उड़ाते थे।
जब मम्मी से आंख बचाकर,
हम बाहर खेलने जाते थे।
जब हम ही चोर हम सिपाही,
हम ही राजा बनते थे।
जब गिल्ली डण्डा खेलने,
हम दो टीमों में बंटते थे।
जब लाल पीले हरे पंख,
हम कापी में दबाकर रखते थे।
जब सांप सीढी और चिड़िया उड़,
हम खेलते नहीं थकते थे।
जब अण्टी के घर की घण्टी,
हम बजा कर भाग जाते थे।
जब 26 जनवरी के लड्डू,
हम बड़े चाव से खाते थे।
जब पेड़ पर चढ कर के,
हम उतरने को चिल्लाते थे।
जब घरवालों से छुपकर,
हम गुलेल खूब चलाते थे।
जब कागज की नाव बनाकर,
हम पानी में तैराते थे।
जब बारिशों में अक्सर,
हम झूम झूम नहाते थे।
जब सुबह सुबह प्रार्थना को,
हम लाईन में लग जाते थे।
जब मैम के क्लास में आते ही,
हम गुड मार्निंग गाते थे।
जब होमवर्क अधूरा होता था,
हम झूठे बहाने बनाते थे।
जब मैडम छुट्टी रखती थी,
हम सब खुशी मनाते थे।
जब दोस्तों के संग मिल,
हम अमचूर इमली खाते थे।
जब एक रूपए की चार टाफी,
हम दूधमलाई वाली लाते थे।
जब नेशनल चिल्ड्रंस बैंक के,
हम नकली नोट गिनते थे।
जब दोस्तों के हाथ से,
हम कंचे, चुम्बक छीनते थे।
जब नई कापी लाते ही,
हम सुगंध उसकी लेते थे।
जब दोस्तों को बर्थ डे पर,
हम शायरी लिख कर देते थे।
जब दादी नानी से जिद कर,
हम कहानियां सुनते थे।
जब परियों, राजकुमारों के,
हम सपने अक्सर बुनते थे।
जब मेहमानों के आने पर,
हम कमरे में छुप जाते थे।
जब वापिस उनके जाते ही,
हम बची हुई मिठाई खाते थे।
बस वही तो दिन थे,
जब हम दिल की सुनते थे।
बस वही तो दिन थे,
जब हम सच्चाई को चुनते थे।
लेकिन ये जो समय है,
ये तो चलता जाएगा।
बचपन जवानी बुढापे में,
जीवन को बदलता जाएगा।
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